Wednesday, September 25, 2013

सिटी ब्यूटीफुल में बांसुरी की तान

संगीत की दुनिया में बांसुरी वादन एक सहज विधा है। लेकिन सिद्धहस्त होने के लिए किसी गुरु की जरूरत तो होती ही है। सिटी ब्यूटीफुल में बांसुरी वादन के गुर सिखाने वाले स्थापित संस्थान भी हैं, लेकिन सेक्टर 22-बी में साईं स्वीट्स के सामने कंचन नाम के शख्स अक्सर बांसुरी बजाते हुए शॉपिंग के लिए निकले लोगों को मिल जाते हैं। उनके पास 'बांसुरी सीखें' पुस्तक और बांसुरियां खरीदने के लिए होती हैं।
  खुले बाजार में आखिर अपने फन से लोगों को किस तरह वाकिफ करवा रहे हैं? इस सवाल पर करीब 36 साल पूरे कर चुके कंचन सीधे 'बांसुरी सीखें'  पुस्तक पर आ जाते हैं और बताते हैं कि मेरे पिता जुगलाल बांसुरी के मास्टर थे और यह पुस्तक उन्होंने लिखी थी। बांसुरी के साधकों के लिए यह उपयोगी है। यूं तो संगीत में कई राग हैं, लेकिन इस पुस्तक में 11 उपयोगी राग हैं। मेरे पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन जो विरासत वे मुझे सौंप गए हैं, मैं उसे आगे बढ़ाने के लिए लोगों को सिखा रहा हूं। साईं स्वीट्स के सामने की मेरी यह बैठक दस साल पुरानी है और अब मैं इसे एक मंच की तरह देखता हूं। मैं यहां रियाज के लिए बांसुरी की तान छेड़ता हूं और सीखने के शौकीन लोग चले आते हैं। कुछ लोग सीखने के लिए बांसुरी और पुस्तक खरीद ले जाते हैं, इससे मेरी जीविका भी चल जाती है। रियाज करते-करते 13 रागों पर मेरी महारत हो गई है। किसी बड़े पुरस्कार या सम्मान का मेरा सपना नहीं है, लेकिन यही हसरत है कि अधिक से अधिक लोगों को गुर बांट दूं।
  होठों पर आई सरगम तो छूट गए सारे गम,
  बस एक ही हसरत है बाकी,
  गुर बांटते ही टूटे यह दम 

कंचन के अनुसार बांसुरी वादन उनके पिता और उनका शौक था, लेकिन बाद में यह आजीविका में बदल गया। बांसुरी सीखने वाले उन्हें पारिश्रमिक दे देते हैं। निजी जलसों में आंमंत्रित किया जाता है तो वहां भी पारिश्रमिक मिल जाता है। बांसुरी पर पहले सरगम सिखाई जाती है और बाद में राग सिखाए जाते हैं। सीखने वाले की मेहनत और लगन ही सफलता का समय तय करती है।

2 comments:

  1. क्या आप हमें इनका पता बता सकते है ये कहाँ रहते है दिल्ली में या कहीं और हमें सिखना है पुस्तक भी लेनी है

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  2. क्या आप हमें इनका पता बता सकते है ये कहाँ रहते है दिल्ली में या कहीं और हमें सिखना है पुस्तक भी लेनी है

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