Wednesday, June 11, 2014

देवभूमि हिमाचल में हादसे

हिमाचल देवभूमि है। देवभूमि अर्थात् देवताओं की भूमि। 'देव' शब्द संस्कृत भाषा की दो क्रियाओं-'दीव्' और 'दा'- से बनता है। दीव् क्रिया 'चमकने' का अर्थ देती है और 'दा' क्रिया 'देने का अर्थ' देती है। इसलिए देवता का अर्थ हुआ- 'चमकने वाला' या 'देने वाला'। किसी मनुष्य या वस्तु के चमकने का अर्थ है- उसका गुण-सम्पन्न होना, गुणों के कारण आकर्षक लगना। हिमाचल अपनी प्रकृति सुषमा के कारण लाखों-लाखों देशी-विदेशी पर्यटकों को खींचता है, आकर्षित करता है। इसलिए यह देवभूमि है। हिमाचल जल-संसाधनों को तो देने वाला है ही, वृक्षों-पत्थरों-रेत-वनस्पतियों का ही नहीं, बिजली और सुरक्षा का भी प्रदाता है। इसलिए वह वास्तव में देवभूमि है। कवि कुलगुरु कालिदास ने हिमाचल का अभिनंदन 'अनंत-रत्न- प्रभव:' अर्थात् 'अनंत रत्नों को उत्पन्न करने वाला' कह कर किया है।

हिमाचल का यह आकर्षण पर्यटकों को लगातार खींचता है और हिमाचल में अचानक होने वाली दुर्घटनाएं और आपदाएं हमारा दिल दहला देती हैं। कभी बादल फट जाने से गांव के गांव बह जाते हैं, कभी पहाड़ टूट जाते हैं और पत्थरों से दबकर लोग मर जाते हैं। पिछले साल भयंकर जल-प्रलय से उत्तराखंड तबाह हो गया था। ये आपदाएं प्राकृतिक हैं। कभी-कभी कुछ दुर्घट घट जाता है, जो मनुष्य कृत होता है। अभी-अभी मंडी जिले में ब्यास नदी पर घटी दुर्घटना पूरी तरह मनुष्य-कृत है। आंध्र प्रदेश के हैदराबाद नगर के एक इंजीनियरिंग कॉलेज के चौबीस छात्र-छात्राओं तथा उनके एक प्रबंधक का अचानक छोड़े गए बांध के पानी के तेज बहाव में बह जाने की घटना हृदय विदारक तो है ही, सरकारी प्रबंधों के लचर होने का जीता जागता प्रमाण भी है। जहां बांध से अचानक, बिना किसी सार्वजनिक सूचना के, पानी का छोड़ दिया जाना भयंकर मानवीय चूक है, वहां पर्यटकों से भरे हुए राजमार्ग के साथ-साथ बहती हुई नदी पर पर्यटकों को सावधान करने वाले सूचना-पटों को न लगाया जाना तथा नदी के तटबंधों को सुरक्षा-प्रबंधों से रहित छोड़ दिया जाना भी प्रशासन के स्तर पर लापरवाही है। अच्छा होता, प्रशासन पर्यटकों के व्यस्त मार्गों पर, पर्यटन के सूचना- केंद्रों पर, नेटवर्क पर सुलभ पर्यटन से जुड़ी सूचनाओं के स्तर पर जरूरी सावधानियों को भी मुहैया करवा देता, जिससे पर्यटक सावधान रहते और दुर्घटना से बच जाते। दुर्घटना के समय किस तरह वे अपना बचाव कर सकते हैं, यह भी उनको बताना उचित रहता। दुर्भाग्य यह है कि यह सब नहीं हुआ और इतने परिवारों को मातम में डूब जाना पड़ा। बांध के जल प्रबंधन को भी ऐसी दुर्घटनाओं का पूर्वाभास होना चाहिए था और उनसे बचाव के कारगर कदम उठाने में उसे दक्षता दिखानी चाहिए थी।

हिमाचल अर्थात् हिमालय पर्वत की शृंखलाओं में विशेषता हिमाचल प्रदेश तथा उत्तरांचल में यात्री-वाहनों के खाइयों में गिर जाने की दुर्घटनाएं बहुत होती हैं। हरशिल में अभी-अभी यात्री बस खाई में गिरी है और मंदाकिनी नदी में रूसी पर्यटक काल कवलित हुए हैं। अच्छी सड़कों की व्यवस्था से इन सड़क दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है। यदि हम पर्यटन-उद्योग को बढ़ाने और उससे समृद्धि को लाने के लिए कृतसंकल्प हैं तो हमें पर्यटकों की सुखद यात्रा सुनिश्चित करनी होगी, उनके अधिकाधिक आराम और उनकी अधिकाधिक सुरक्षा को वास्तविकता में अनूदित करना होगा।

पहाड़ों की यात्रा तब और भी त्रासद हो जाती है, जब वीरान जगह पर एक सड़क से दूसरी सड़क फटती है और पर्यटक को पता नहीं चल पाता कि किस सड़क से जाकर गंतव्य तक पहुंचा जाए। ऐसी जगहों पर सूचनापट लगने चाहिए। इससे देश का पेट्रोल-डीजल भी बेकार का चक्कर न लगाने से बचेगा और पर्यटकों को विशेष सुविधा होगी।

इन हादसों में जो बहुमूल्य जानें चलीं गई हैं, जिनके घर के चिराग जलसमाधि में लीन हो गए हैं, जिनके घरों की आशा अंतहीन अवसाद में डूब गई हैं- उनकी क्षतिपूर्ति असंभव है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार को चाहिए कि उनकी हर संभव सहायता करे। साथ ही ऐसे कारगर कदम उठाएं कि ऐसी त्रासदियों की आवृत्ति न हो। जब पर्यटक घर से निकलें और पहाड़ों पर आएं, तो वे पूरी तरह सजग और सूचनाओं से लैस हों, जो उनको संकट से बचाने में सहायक हों- यह व्यवस्था होनी ही चाहिए।

-डॉ. राजकुमार मलिक,