Sunday, April 10, 2011

कैसे किया जाए भ्रष्टाचार को निर्मूल

डॉ. राजकुमार मलिक

भ्रष्टाचार समाज में व्यक्ति का ऐसा आचरण होता है जो मानक से गिरा हुआ होता है। इस गिरावट को व्यक्ति के स्तर पर दो तरीकों से रोका जा सकता है। एक तरीका भय का है जिसके लिए न्याय व्यवस्था और दंड विधान मौजूद है। दूसरा तरीका अपने मन को साफ रखने का है। यह व्यक्ति के स्तर पर संस्कारों से आता है और संस्कारों को विचार बनाते हैंं। अन्ना हजारे ने केवल विचार दिया है। विचार हर व्यक्ति का संस्कार कैसे बने, इसकी कोई रूपरेखा नहीं सुझाई। अच्छा होगा यदि वे पत्तों को सींचने के बजाय जड़ों में पानी दें। भ्रष्ट आचरण के व्यक्तियों को सजा दिलाना अच्छा काम है। जो बहुत व्यापक भी है और कठिन भी। हमारी प्रशासनिक व्यवस्था और न्याय व्यवस्था की कछुआ चाल और स्वार्थपरता इसमें बहुत बड़ी बाधा बनती आ रही है और आगे भी बनेगी। हालत यह है कि न्यायपालिका तक पर भ्रष्टाचार की अंगुली उठ रही है।   दंड संहिता तो न्याय पालिका ही लागू करेगी और जांच एजेंसियों में भ्रष्ट लोग ही ज्यादा संख्या में बैठे दिखाई देते हंै। इसलिए सजा दिलाने के काम में ही पूरी शक्ति लगाने के बजाय अच्छा होगा कि लोगों में व्यापक रूप से ये संकल्प पैदा किया जाए कि हर व्यक्ति भ्रष्टाचार से दूर बना रहेगा। इस संकल्प के लिए दृढ़ता चाहिए और उस दृढ़ता को उत्पन्न करने के लिए एक तंत्र को विकसित करना होगा। अन्ना हजारे को इधर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। एक बात और है अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के केवल आर्थिक पक्ष पर चोट की है। भ्रष्टाचार  के अन्य पक्ष अछूते पड़े हैं। जब तक मन में पूरी पवित्रता नहीं होगी मनुष्य के चरित्र की आर्थिक गिरावट मौका मिलते ही जब तब अपना सिर उठाती रहेगी। देखना यह होगा कि उनके उस जुलूस में अपनी नेतागिरी चमकाने वाले स्वार्थी तत्व सम्मिलित न हो जाएं जो अपना भविष्य इस आंदोलन के माध्यम से संवारने का सपना देख रहे हैं। जिस तरह से जंतर मंतर पर कुछ नेताओं के साथ अभद्र व्यवहार किया गया जिस पर अन्ना को बाद में माफी मांगनी पड़ी, उससे तो यही अनुमान होता है कि जंतर मंतर पर बैठे हुए अन्ना के सभी समर्थक राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से मुक्त नहीं थे। राष्ट्र की रचना के लिए बहिष्कारवादी दृष्टि नहीं चाहिए बल्कि एक ऐसी समायोजित दृष्टि चाहिए जो हर तरफ से पवित्र और केवल राष्ट्र के प्रति कृतज्ञ हो।अन्ना का यह आंदोलन अभी विचार के रूप मेें सामने आया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाली पीढिय़ों में यह पवित्रता और राष्ट्र प्रेम का आत्मानुशासन बनेगा। अंतत: इस शुरुआत को करने के लिए अन्ना हजारे, किरण बेदी, स्वामी रामदेव और स्वामी अग्निवेश आदि सज्जन निश्चिय ही बधाई के पात्र हैं।